योगी श्री अनिल जी महाराज

एक गृहस्थ योगी

योग-योगेश्वर महाप्रभु श्री रामलाल जी महाराज और आनंदकंद अनंतविभूषित सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज की सिद्धयोग परंपरा को साकार करने हेतु और अविनाशी योग विज्ञान के ज्ञान को प्रचारित व प्रसारित करने के लिए सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज से योग दीक्षित योगी श्री अनिल जी वर्तमान में प्रचाररत हैं। योगी श्री अनिल जी ने अविनाशी योग विज्ञान के आध्यात्मिक पहलू और श्री महाप्रभु जी द्वारा आविष्कारित “जीवन तत्व साधन” आसनों को सामाजिक हित में सर्वसाधारण तक सरलता से पहुंचाया है। 

योगी श्री अनिल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद बुलंदशहर की तहसील सिकंदराबाद मे विक्रमी संवत 2016 (सन 1959) के पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को पंडित श्री देवदत्त शर्मा जी के यहाँ हुआ था। आपश्री के दादाजी पंडित श्री रामलाल जी योग के नियमित साधक थे। आपश्री के पिताजी धर्मनिष्ठ व सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज के शिष्य हैं और पन्नी जी चीनी मिल, बुलंदशहर में कार्यरत थे। आपकी माताजी श्रीमती पुष्पा देवी एक धर्मपरायण और सात्विक विचारधारा की महिला थीं व सन 1981 में उनका देहावसान हो गया। चूंकि आपश्री का बाल्यकाल अपने दादाजी और पिताजी के संरक्षण में रहा तो आपकी रूचि भी ध्यान पूजा में लगी रही। आपश्री 15-16 वर्ष की आयु में बहते जल में खड़े होकर घंटों ॐ का जप किया करते थे। सन 1976 में आपश्री की दीक्षा आनंदकंद अनंतविभूषित सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज द्वारा विवाह पूर्व सिद्ध गुफा पर हुई। जिसमें श्री सद्गुरुदेव जी महाराज ने आपके पिता के द्वारा आपकी ध्यान पूजा की बात सुनकर सिद्ध गुफा सवाँई धाम आश्रम पर बुलाकर दीक्षा दी। सन 1976 से लेकर सन 1980 तक सिद्ध गुफा संवाई धाम में आपश्री को श्री सद्गुरुदेव चंद्रमोहन जी महाराज ने अपने कठोर अनुशासन में रखकर ध्यान-योग का अनवरत अभ्यास कराया। आपश्री कहीं महात्मा या सन्यासी ना बन जाएं, इसके चलते आपश्री के परिवारजनों ने सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज से परिवार की आर्थिक स्थिति और परिवार के बड़े पुत्र होने के कारण नौकरी करने और विवाह कराने का हठपूर्वक आग्रह किया। जिसपर सद्गुरुदेव भगवान ने उन्हें परिवारजनों की बात मानने की आज्ञा दी व योग पारंगत होने का आशीर्वाद दिया। आपश्री को पिताजी की जिद्द के चलते नौकरी में जाना पड़ा। सन 1981 में आपश्री का केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल में उप निरीक्षक के पद पर चयन हो गया। आपश्री ने पिताजी की आज्ञा पर सन 1983 में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमति सुधा शर्मा बहुत विदुषी, धार्मिक व कर्तव्यपारायण महिला है। आपश्री को साधना काल में परिवार और विशेष रूप से धर्मपत्नी का पूर्ण सहयोग मिला। विवाह के पश्चात सन 1984 में आप सपत्नीक सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज के दर्शन हेतु सिद्धगुफा संवाई धाम गए तब सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज ने उन्हें सपत्नीक दोबारा दीक्षा दी। सन 1985 में आपश्री केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के दिल्ली मुख्यालय में नियुक्त थे व मुख्यालय दिल्ली स्थित आश्रम के नजदीक होने के कारण आपश्री का आश्रम आना-जाना होता था। आरके पुरम स्थित आश्रम में सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज के आगमन की सूचना पर आपश्री उनके दर्शन हेतु जाते थे। इन्हीं अवसरों पर एक दिन सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज की आपश्री पर असीम अनुकंपा हुई। श्री सद्गुरुदेव भगवान ने आपश्री को योग के गूढ विषयों से अवगत कराते हुए तीसरी बार सम्पूर्ण योग दीक्षा से पारंगत किया और नौकरी करते हुए ही आश्रम पर रहकर योग साधना के लिए आज्ञा दी। जब-जब सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज दिल्ली आश्रम पर रहते थे तब आपश्री को अनुशासित रूप से कठिन से कठिन योग अनुष्ठान को यूहीं संपन्न करा दिया करते थे। आपश्री पर सद्गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज की विशेष कृपा रही और आपश्री का अत्यधिक समय दिल्ली आश्रम में सद्गुरुदेव जी के सानिध्य में रहा। मई माह सन 1990 में जब आपश्री का स्थानांतरण हुआ तब श्री सद्गुरुदेव भगवान ने आपको गले लगाकर खूब लाड़ लड़ाया व योग में उन्नति का आशीर्वाद प्रदान किया। इसके पश्चांत आपश्री की श्री सद्गुरुदेव जी से कभी भौतिक भेंट नहीं हुई। सन 1995 में आपश्री की नियुक्ति ऊधमपुर में हुई लेकिन उच्च अधिकारियों द्वारा कुछ समय के लिए आपको दिल्ली मुख्यालय पर प्रतिनियुक्त किया। उसी दौरान एक दिन ध्यान अवस्था में रहते हुए आपको श्री सद्गुरुदेव जी के माध्यम से योग के प्रचार-प्रसार हेतु कार्य करने की आज्ञा हुई और उसके बाद आपश्री के मन में विरक्ति की भावना उत्पन्न हो गई। तब आपने सवाँई धाम जाकर दर्शन करने का मन बनाया। इस हेतु आपश्री ने उच्च अधिकारियों से अवकाश मांगा लेकिन आपको अवकाश नहीं मिला उसके पश्चात आपने बिना सूचना के सवाँई धाम आकर दर्शन किए व वापिस नौकरी पर नहीं गए। आपने सवाँई आश्रम और ऋषिकेश आश्रम पर रहकर ध्यान साधना का कठोर अभ्यास किया एवं प्रत्येक वर्ष के चातुर्मास के श्रावण मास में ऋषिकेश के जंगलों व वहाँ की पहाड़ी कन्दराओं में रहकर भी एकाकी अनुष्ठान किए। आपश्री को अपने समस्त गुरु भाई व बहनों से विशेष प्रेम मिलता रहा। आपकी बड़ी गुरु-बहन योगिनी सुश्री डॉ़. उमा जी हमेशा आपको लाड़ करती थी और श्री सद्गुरुदेव भगवान से आप पर विशेष कृपा करने हेतु आग्रह किया करती थी। आपश्री को ब्रह्मचारी पूरणचंद जी, ब्रह्मचारी बृजमोहन जी, ब्रह्मचारी वेदराम जी, ब्रह्मचारी शम्भूनाथ जी, ब्रह्मचारी ओमप्रकाश पालीवाल जी और ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी से विशेष प्रेम मिला। आपश्री पर ब्रह्मचारिणी बाला बहिन जी का स्नेह अटूट रहा। आपश्री को योग अनुष्ठान करते समय ऋषिकेश आश्रम पर ब्रह्मचारी पूरणचंद जी और सवाँई आश्रम पर ब्रह्मचारी मोहन स्वरूप जी (मुन्ना भैय्या) और ब्रह्मचारी डॉ. दासलाल जी का पूर्ण सहयोग मिलता रहा व वर्तमान में भी मिलता है। ब्रह्मचारी शम्भूनाथ जी के कहने पर आपश्री ने इटावा आश्रम पर भी योग अनुष्ठान किये। सन 2005 से पूर्व आपश्री अपने माध्यम से जुड़े योग-पिपासु साधकों को ब्रह्मचारी पूरणचंद जी और ब्रह्मचारी बृजमोहन जी की समय उपलब्धता पर उनसे योग दीक्षा कराते रहे और श्री महाप्रभु जी और सद्गुरुदेव भगवान की योग पताका का प्रचार-प्रसार करते रहें। सन 2004 में आपश्री, ब्रह्मचारी बृजमोहन जी से मिलने उनके द्वारा स्थापित योग आश्रम, ग्राम बामनी, जिला अलीगढ़ गए तो ब्रह्मचारी बृजमोहन जी ने आपसे कहा चूंकि अब हमारा और ब्रह्मचारी पूरणचंद जी का शरीर बृद्ध हो गया है व अधिकतर अस्वस्थ रहते है और तुझपर श्री सद्गुरुदेव भगवान की विशेष कृपा रही है तो इस बार के श्रावण मास के एकांतवास अनुष्ठान में सद्गुरुदेव भगवान से योग दीक्षा देने की अनुमति मांग ले। उस वर्ष आपश्री ने ऋषिकेश आश्रम पर अनुष्ठान किया और ब्रह्मचारी बृजमोहन जी और अपनी वार्तालाप का वर्णन ब्रह्मचारी पूरणचंद जी से किया तो ब्रह्मचारी पूरणचंद जी ने भी उपरोक्त राय पर अपनी सहमति दी। उस श्रावण मास के एकांतवास अनुष्ठान में शिवरात्रि के दिन ध्यान अवस्था में आपको श्री सद्गुरुदेव भगवान के दर्शन हुए और  श्री सद्गुरुदेव भगवान ने सहर्ष यह कहते हुए योग दीक्षा देने की आज्ञा दी कि लल्ला, जिन योग-पिपासु बच्चों का तेरे माध्यम से प्रभुजी से जुड़ने का संस्कार है, उनको परख कर ही दीक्षा देना। वर्तमान में आपश्री उनके पास आने वाले किसी भी व्यक्ति की श्री महाप्रभु जी और श्री सद्गुरुदेव भगवान में आस्था और योग के प्रति समर्पण की भावना को परख कर ही दीक्षा देते है और इसमें कभी-कभी कई वर्ष भी लग जाते है।

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